सिमडेगा/जलडेगा
लचरागढ़ से बाड़ीबिरिंगा तक करीब 13 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण करोड़ों रुपये की लागत से किया जा रहा है, लेकिन निर्माण कार्य शुरू होते ही यह परियोजना विवादों में घिर गई है। ग्रामीणों के अनुसार, सड़क निर्माण में लगी कंपनी ने न तो जमीन के मालिकों से अनुमति ली और न ही कोई कागजी कार्रवाई पूरी की, बस सीधे निर्माण शुरू कर दिया। इसी क्रम में सैकड़ों की संख्या में बहुमूल्य इमारती और फलदार पेड़ काट दिए गए।
स्थानीय लोगों का कहना है कि कटे हुए साल (सखुआ) के पेड़ों के अवशेषों को आग लगाकर नष्ट कर दिया गया, जबकि कई बड़े पेड़ों को जेसीबी मशीन से जंगल के गड्ढों में छिपा दिया गया। ग्रामीणों की जमीन भी बिना उनकी सहमति के खोद दी गई।
गांव के नीलिमा हांसदा, राजीव बड़ाईक, बिरसमुनी देवी, सुरेंद्र सिंह और नारायण सिंह का आरोप है कि न तो किसी ने मुआवजे को लेकर उनसे बात की और न ही कोई बैठक की गई। पेड़ काटने और जमीन अधिग्रहण से संबंधित कोई दस्तावेज ग्रामीणों को नहीं दिया गया है। इससे यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें मुआवजा मिलेगा भी या नहीं।
वन विभाग भी अंजान
मीडिया द्वारा मौके पर जाकर की गई पड़ताल में कटे हुए पेड़ साफ़ तौर पर नजर आए। जब इस बारे में सिमडेगा के डीएफओ शशांक शेखर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं है और जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। कोलेबिरा विधायक नमन विक्सल कोनगाड़ी ने कहा कि उन्होंने कुछ दिन पहले ही भू-अर्जन पदाधिकारी, डीएफओ और सड़क निर्माण विभाग के अभियंताओं से इस विषय पर बैठक की थी। अगर ग्रामीणों से बिना अनुमति पेड़ काटे गए हैं और अवशेषों को छिपाया गया है, तो यह गंभीर मामला है। लिखित शिकायत मिलने पर जांच करवाई जाएगी।
कंपनी ने झाड़ा पल्ला, ग्रामीणों पर डाला दोष
जब मीडिया ने बिना कागजी प्रक्रिया के पेड़ काटने पर कंपनी से सवाल किया तो उन्होंने पूरी जिम्मेदारी ग्रामीणों पर डाल दी। कंपनी ने दावा किया कि पेड़ ग्रामीणों ने खुद काटे हैं।